Friday, March 12, 2010

"कोई और"

मैं आज आपके सामने अपनी सबसे अच्ही कविताओं में से एक प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह कविता मैंने फरवरी २००८ में लिखी थी जो की मेरी सबसे पहली कविता थी । यह कविता मुझे इसलिए बहुत अच्ही लगती है क्यूकि यह काफी प्रासंगिक है उन सभी के लिए जिनका कभी कोई कृष हुआ जो बाद में क्रुशेड़ हो गया .ज्यादा तर केसेस में ऐसा ही होता है , पर कोई बात नहीं। इस कविता के कुछेक अंश मुझे अत्यंत अच्छे लगते है मुझे आशा है वे आपके दिल को भी छु जायेंगे । मैं आपको इस बात का पूरा विश्वास दिलाता हूँ की इस कविता मे कही ना कही आप अपने आप को जरूर खोज लेंगे और मेरा यह विश्वास है की यह आपके साथ जरूर घटित हुआ होगा बशर्ते आप का कृष क्रुशेड़ हुआ हो । एक बात मैं आपसे और कहना चाहूँगा की कविता prarambh में आपको जहाँ जाती लगेगी अंत में केवल अपने शीर्षक को सार्थक करते हुए दिखेगी अगर आप इस बात पे गौर कर पाएंगे तोह मुझे अत्यंत ख़ुशी होगी । आप सभी से अनुरोध की की अगर यह मेरी krat कही से भी आपको छूती है तोह कृपया अपने भावनाओं के मेरे संग जरूर शेयर करे मै बहुत आभारी हूँगा आपका . प्रस्तुत है मेरी कृति आपके समुक्ख जिसका शीर्षक है-

" कोई और"


आज फिर है मन बड़ा उदास,
न जाने क्या है इसकी आस ।
दीवानों की तरह सोचता है,
फिर भी मन जैसे घोड़े को,
दिमाग की लगाम से कोसता है।


यह फरवरी की सर्द शामें,
क्लास के बाद कमरे की चाहर दीवारी में,
कुच्छ लिखता हूँ , सोचता हूँ ,
और अपने आप से ही पूछता हूँ -



की क्यों है दिल इतना खामोश ,
छाया है तुझ पर यह कैसा आक्रोश ,
तू खुद से इतना परेशान क्यों है ?
तेरा मन इतना अशांत क्यों है ?
देख चारो तरफ है कितनी भीड़ ,
चह चाहते हुए ख़ुशी -ख़ुशी
पक्षी भी लौट रहे अपने नीड़ ,
देख कोई है फ़ोन पर व्यग्न,
तोह कोई सी-अस में मग्न ,
तोह किसी को है पढाई की ही लग्न
फिर तेरी ही रूचि है कहाँ ?
बुलाले और ढूंढ उसमें अपना जहाँ ।

पर मेरा दिल तोह अब भी है खामोश,
अर्ध चेतनावस्था में पड़ा हुआ है बेहोश .
वोह सोचता है मेरी रूचि है कहाँ जो उसे बुलाऊ ,
मिलन होने पर जिससे मैं फूला न समाऊ ,
अब तोह कोई नाम कोई चहरा भी नहीं है आँखों के सामने,
जिससे याद कर , देख कर मै मुस्कुराऊ ,
और उन् हसीं ख्वाबों में खो जाऊ ।



सोचता है इससे अच्छे तोह थे हमं पहले,
जब किसी ने हमारी भावनाओं के संग खूब खेल खेले .
कम से कम हम याद उन्हें तोह करते थे ,
और कुछ न सही तोह अरमान ही दिल में सजते थे।



जागते हुए , सोचते हुए बिता देते थे रातें ,
बे -शब्द ही खुद से करते थे हजारों बातें ।
वोह जाने न जाने नाम हमारा ,
पर सब कुछ थे वोह हमारे लिए ,
एक बुरी बात क्या कही दोस्तों ने ,
लड़ पड़े हम सबसे सिर्फ उनके लिए ।


पर अब ना तोह है कोई नाम,
और ना ही है उस चहरे का कोई काम .
है तोह है सिर्फ इस बात का गम ,
की अरमाँ अभी भी ना हुए है कम ।

इस बिस्तर पर लेते हुए दिल को देता हु यही दिलाषा ,
की एक ना एक दिन पूरी जरूर होगी तेरी यह आशा .
के कभी ना कभी तोह कोई और आएगी ,
दिल में उमंगो और अरमानो के फूल वापस लगाएगी ।


पर पता नहीं जैसे दिल को कोई और शब्द रास नहीं आता ,
या यू कहू की मेरे इस दिल हीरे को कोई और जौहरी तराश नहीं पाता ।
मन भले ही हो अभी जैसे कोई सूना आँगन होली का ,
पर फिर भी फिर भी लगता है जैसे
बिखरा पड़ा है आकाश में बहुत सा रंग रोली का ।

पाता नहीं कब शांत होगी मेरे यह दिलोदिमाग की यह अनबन,
कैसे स्वीकार कर पायेगा उस कोई और को मेरा यह भोला मन ।

4 comments:

Unknown said...

sid : bahut dard hai tumhari kavita
mein..itna dard late kahan se
ho..humare paas to nahin hai :P

pandey : sid babu tum kya jano dard
ki kimat..kaviyon ke dil ka
raz hota hai dard..

pkd: "pkd goonga hai kuch nahin bol
sakta"

sachin: "sachin lulha hai kuch
nahin likh sakta"

lekin pkd aur sachin ki bhavnoa ko
samjhe..likha hai launde ne..

Unknown said...

aap ki bhaonav ki tab acche se ki jaa sakegi jab isko kisi anna se padwaoge....3 idiots ki tarah.....:)

S SOMAVANSHI said...

a great combination of "melancholiness" and "greed to be loved".....fantastic expressions.

Preeti Pandey said...

very well written....praiseworthy effort!!!
if this one is ur first attempt in the field of creative writing, i must say that u have to travel a very long path leaving ur foot prints behind and u urself will b known as a milestone in the journey of success...
best wishes for ur bright future ahead in poetry writing.

ek baat aur....aapki kavita kisi kavi ki kuch panktiyoo(lines) ko sarthak(charitarth) karti nazar aati hai...
"viyogi hoga pehla kavi,
aah se upja hogaa gyan,
umad kar aankhon se chup chap
bahi hogi kavita anjaan"