" कोई और"
आज फिर है मन बड़ा उदास,
न जाने क्या है इसकी आस ।
दीवानों की तरह सोचता है,
फिर भी मन जैसे घोड़े को,
दिमाग की लगाम से कोसता है।
यह फरवरी की सर्द शामें,
क्लास के बाद कमरे की चाहर दीवारी में,
कुच्छ लिखता हूँ , सोचता हूँ ,
और अपने आप से ही पूछता हूँ -
की क्यों है दिल इतना खामोश ,
छाया है तुझ पर यह कैसा आक्रोश ,
तू खुद से इतना परेशान क्यों है ?
तेरा मन इतना अशांत क्यों है ?
देख चारो तरफ है कितनी भीड़ ,
चह चाहते हुए ख़ुशी -ख़ुशी
पक्षी भी लौट रहे अपने नीड़ ,
देख कोई है फ़ोन पर व्यग्न,
तोह कोई सी-अस में मग्न ,
तोह किसी को है पढाई की ही लग्न
फिर तेरी ही रूचि है कहाँ ?
बुलाले और ढूंढ उसमें अपना जहाँ ।
पर मेरा दिल तोह अब भी है खामोश,
अर्ध चेतनावस्था में पड़ा हुआ है बेहोश .
वोह सोचता है मेरी रूचि है कहाँ जो उसे बुलाऊ ,
मिलन होने पर जिससे मैं फूला न समाऊ ,
अब तोह कोई नाम कोई चहरा भी नहीं है आँखों के सामने,
जिससे याद कर , देख कर मै मुस्कुराऊ ,
और उन् हसीं ख्वाबों में खो जाऊ ।
सोचता है इससे अच्छे तोह थे हमं पहले,
जब किसी ने हमारी भावनाओं के संग खूब खेल खेले .
कम से कम हम याद उन्हें तोह करते थे ,
और कुछ न सही तोह अरमान ही दिल में सजते थे।
जागते हुए , सोचते हुए बिता देते थे रातें ,
बे -शब्द ही खुद से करते थे हजारों बातें ।
वोह जाने न जाने नाम हमारा ,
पर सब कुछ थे वोह हमारे लिए ,
एक बुरी बात क्या कही दोस्तों ने ,
लड़ पड़े हम सबसे सिर्फ उनके लिए ।
पर अब ना तोह है कोई नाम,
और ना ही है उस चहरे का कोई काम .
है तोह है सिर्फ इस बात का गम ,
की अरमाँ अभी भी ना हुए है कम ।
इस बिस्तर पर लेते हुए दिल को देता हु यही दिलाषा ,
की एक ना एक दिन पूरी जरूर होगी तेरी यह आशा .
के कभी ना कभी तोह कोई और आएगी ,
दिल में उमंगो और अरमानो के फूल वापस लगाएगी ।
पर पता नहीं जैसे दिल को कोई और शब्द रास नहीं आता ,
या यू कहू की मेरे इस दिल हीरे को कोई और जौहरी तराश नहीं पाता ।
मन भले ही हो अभी जैसे कोई सूना आँगन होली का ,
पर फिर भी फिर भी लगता है जैसे
बिखरा पड़ा है आकाश में बहुत सा रंग रोली का ।
पाता नहीं कब शांत होगी मेरे यह दिलोदिमाग की यह अनबन,
कैसे स्वीकार कर पायेगा उस कोई और को मेरा यह भोला मन ।